The news Point : यूं तो चंदौली की पहचान देश के अतिपिछड़े जिलों में है. लेकिन बावजूद इसके यह जिला देश की पटल पर राजनीतिक रूप से काफी शसक्त है. यहां की धरा समाजवादी पुरोधा राम मनोहर लोहिया पंडित कमलापति त्रिपाठी को हरा सकती है. तो किसी को लगातार तीन बार सांसद बनने का मौका भी दे चुकी है. चंदौली लोकसभा ने सभी दलों को सेवा का मौका दिया है. इस बार का चुनाव 2004 और 2009 के परिणाम का मंजर दिखा सकता है, या एक तरफा जीत का भी आंकड़ा दे सकता है. चंदौली संसदीय सीट पर सांसद का सेहरा किसके सिर बंधेगा इसमें मात्र कुछ घंटे बचे हैं. लेकिन कयासों और चर्चाओं का बाजार गर्म है. क्या महेंद्र पांडेय अपनी ही पार्टी के रिकार्ड की बराबरी करेंगे या बीरेंद्र सिंह इंडिया गठबंधन के पहले सांसद होने का गौरव हासिल करेंगे या फिर सत्येंद्र मौर्य दूसरी बार हाथी को दिल्ली पहुंचाएंगे.
चंदौली लोकसभा सीट की सियासत अजब-गजब है। इस सीट पर 1952 से चुनाव हो रहा है. यहां से पहले सांसद त्रिभुवन सिंह रहे हैं. वे बाद में कुछ समय के लिए यूपी के मुख्यमंत्री भी रहें. उन्होंने दिग्गज समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया को पटखनी दी थी. इसके बाद इस सीट से कांग्रेस पांच बार, भाजपा पांच, सपा दो बसपा एक, सोशलिस्ट पार्टी दो, जनता दल एक बार जीत दर्ज कर चुकी है. भाजपा ने यहां पर मौजूदा सांसद और केंद्रीय मंत्री डा महेंद्र नाथ पांडे पर तीसरी बार भरोसा जताया. इंडिया गठबंधन से बीरेंद्र सिंह और बसपा से सत्येंद्र कुमार मौर्य के अलावा सात अन्य प्रत्याशी भी हैं. इस बार का मुकाबला INDIA बनाम NDA माना जा रहा है. लेकिन बसपा इस मुकाबले को रोचक बनाने में जुटी है. लेकिन गिरे वोट प्रतिशत ने सबके माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी है.
मोदी लहर में भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में चंदौली में जीत दर्ज की थी. 2019 के चुनाव में भाजपा का दबदबा कायम रहा. वैसे मतदान के दो दिन तक समर्थक अपने अपने उम्मीदवारों को समझने में लगे हैं. वोटिंग प्रतिशत ने सभी प्रत्याशियों की नींद उड़ाई है. लोकसभा में मतदान होने के बाद प्रत्याशी अपने अपने घर पर मौजूद हैं. समर्थक सुबह से ही पहुंचकर शाम तक जीत की अंक गणित को लगाते रहे 10 प्रत्याशियों के भाग्य ईवीएम में कैद है. समर्थक लगभग 60 फीसदी पड़े मतों की जातीय और राजनीतिक तरीके से मूल्यांकन करने में लगे हैं. कल सुबह आठ बजे से मतगणना आरंभ होगी. प्रशासनिक तैयारियां पूरी हो गई. अब देखना है कि किसके सिर पर सांसद का सेहरा बंधता है.