The News Point (चन्दौली) : केंद्र की मोदी सरकार ने 24 संसदीय समितियों का गठन किया है.जिसमें भदोही से सांसद डॉ बिनोद बिंद को स्वास्थ्य समिति का स्थायी सदस्य नियुक्त किया गया है, जबकि रामगोपाल यादव को स्वास्थ्य समिति का अध्यक्ष बनाया गया है. उनके मनोनयन से संसदीय क्षेत्र भदोही समेत चन्दौली के समर्थकों में हर्ष व्याप्त है.
स्वास्थ्य एवं समिति के सदस्य चुने जाने के लिए सांसद डॉ बिनोद बिंद ने केंद्रीय नेतृत्व, स्वास्थ्य मंत्री के प्रति आभार व्यक्त किया है. कहा कि सदस्य के रूप में संसदीय समिति का हिस्सा बनना उनके लिए सम्मान की बात है, उनका प्रयास इस ज़िम्मेवारी को पूरी निष्ठा और यथा संभव जनकल्याण के मुद्दों के समाधान को कृत संकल्पित रहेगा.
सांसद बिनोद बिंद ने यह भी बताया कि उनके कार्यों की प्राथमिकता सूची में स्वास्थ्य के लिए क्षेत्र में आधारभूत ढांचे को मजबूत करना व सरकारी अस्पतालों को व्यापक व अत्याधुनिक सुविधा से लैस करना होगा. ताकि देश के आम नागरिकों को सुगम इलाज मिल सके और सरकारी अस्पतालों में स्वीकार्यता बढ़ाने पर जोर दिया जायेगा. इसके अलावा समिति के अध्यक्ष प्रो रामगोपाल यादव को इस स्वास्थ्य संबंधी स्थायी समिति का अध्यक्ष नियुक्त होने पर शुभकामना प्रेषित किया है. यह समिति स्वास्थ्य की वित्तीय नीतियों, बजट और स्वास्थ्य सुधारों पर चर्चा और मार्गदर्शन करने का महत्वपूर्ण कार्य करती है. इन जिम्मेदारियों को निभाने के साथ, समिति का लक्ष्य देश की स्वास्थ्य सूचकांक को सशक्त और जनोपयोगी बनाना है.
कौन हैं डॉ. विनोद कुमार बिंद
डॉ बिनोद बिंद मूलरूप से चन्दौली के कवई पहाड़पुर के रहने वाले हैं. बेहद ही सामान्य परिवार जन्मे और आर्थिक विषमताओं के बीच अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया. गोल्ड मेडल प्राप्त करते हुए ऑर्थोपेडिक सर्जन बने. उन्होंने बतौर डॉक्टर गरीब जरूरतमंदों की दिल खोलकर मदद की और बहुत ही कम दिन में चन्दौली जिले के सबसे बड़े डॉक्टर के तौर पर अपनी पहचान स्थापित की.
वे अपने समाज और लोगों के बीच एक आइडियल के तौर पर उभरे. उन्होंने बिंद बिरादरी समेत गरीब बच्चियों की सामूहिक शादी का बीड़ा उठाया. पिछले 10 साल में करीब 1 हजार बेटियों की शादी करा चुके हैं. उनकी उभरती सामाजिक क्षवि से प्रभावित होकर अखिलेश यादव ने उन्हें पार्टी ज्वाइन कराते हुए प्रदेश कार्यकारिणी में शामिल किया. लेकिन मिर्जापुर के मझवां विधानसभा सीट से टिकट न मिलने पर उन्होंने निषाद पार्टी ज्वाइन करते हुए बतौर एनडीए उम्मीदवार चुनाव लड़े और कम समय मिलने के बावजूद प्रचंड जीत दर्ज की.
इस जीत ने उन्हें विशेषज्ञ डॉक्टर से एक मंझे हुए राजनेता के तौर पर पहचान दी. विधायक बनने के लिए बाद उनका राजनीतिक और सामाजिक दायरा बढ़ा. वे मिर्जापुर के साथ ही भदोही में खासे सक्रिय रहे. जिसके बाद लोगों के बीच उन्हें सांसद बनाने आवाज बुलंद होने लगी. 2024 के लिए कठिन दौर में वे चुनाव लड़े और जीत दर्ज की. खास बात यह है कि डॉ. विनोद बिंद चन्दौली मिर्जापुर भदोही समेत पूर्वांचल में बिंद बिरादरी के बड़े नेता माने जाते हैं.
संसद है तो समितियों की जरूरत क्यों?
इसकी जरूरत इसलिए क्योंकि संसद के पास बहुत सारा काम होता है. इन कामों को निपटाने के लिए समय भी कम होता है. इस कारण कोई काम या मामला संसद के पास आता है तो वो उस पर गहराई से विचार नहीं कर पाती. ऐसे में बहुत सारे कामों को समितियां निपटाती हैं, जिन्हें संसदीय समितियां कहा जाता है. संसदीय समितियों का गठन संसद ही करती है.
ये समितियां लोकसभा स्पीकर के निर्देश पर काम करती हैं और अपनी रिपोर्ट संसद या स्पीकर को सौंपती हैं. ये समितियां दो प्रकार की होती हैं. स्थायी समितियां और तदर्थ समितियां. स्थायी समितियों का कार्यकाल एक साल होता है और इनका काम लगातार जारी होता है. वित्तीय समितियां, विभागों से संबंधित समितियां और कुछ दूसरी तरह की समितियां स्थायी समितियां होती हैं.
वहीं, तदर्थ समितियों का गठन कुछ खास मामलों के लिए किया जाता है. जब इनका काम खत्म हो जाता है तो इन समितियों का अस्तित्व भी खत्म हो जाता है.
कितनी तरह की होती हैं स्थायी समितियां?
स्थायी समितियां मोटे तौर पर तीन तरह की होती हैं. इनमें वित्तीय समितियां, विभागों से संबंधित समितियां और दूसरी तरह की स्थायी समितियां होती हैं. वित्तीय समितियों में तीन समितियां होती हैं. पहली- प्राक्कलन समिति, दूसरी- लोक लेखा समिति और तीसरी- सरकारी उपक्रमों से संबंधित समिति. इनमें 22 से लेकर 30 सदस्य होते हैं. प्राक्कलन समिति में सिर्फ लोकसभा सदस्य होते हैं. जबकि, लोक लेखा और सरकारी उपक्रमों से संबंधित समितियों में लोकसभा के 15 और राज्यसभा के 7 सदस्य होते हैं. विभागों से संबधित समितियों की संख्या 24 है. इनमें केंद्र सरकार के सभी मंत्रालय और विभाग आते हैं. हर समिति में 31 सदस्य होते हैं. इनमें 21 लोकसभा और 10 राज्यसभा के सदस्य होते हैं. इनमें गृह, उद्योग, कृषि, रक्षा, विदेश मामलों, रेल, शहरी विकास, ग्रामीण विकास जैसे विभागों की समितियां होती हैं.
इनका काम क्या होता है?
संसद की स्थायी समितियों का काम सरकार के काम में हाथ बंटाना होता है. चूंकि, संसद के पास बहुत से काम होते हैं, लिहाजा ये समितियां उन कामों को देखती है और अपने सुझाव देती है. इन समितियों का काम सरकार के कामकाज पर भी निगरानी करना होता है. हर समिति का काम अलग-अलग होता है. जैसे- वित्तीय समितियों का काम होता है सरकार के खर्च पर निगरानी रखना. ये देखना कि सरकार ने समय रहते खर्च किया है या नहीं? या कहीं ऐसी जगह तो खर्च नहीं किया जिससे नुकसान हुआ हो? या फिर खर्च करने में कोई अनियमितता या लापरवाही तो नहीं बरती गई?
वित्तीय समितियां इन पर नजर रखती है और अगर कुछ गड़बड़ी मिलती है तो विभाग से इसकी जानकारी मांगी जाती है और पूछा जाता है कि गड़बड़ी रोकने के लिए क्या कार्रवाई की गई? संसदीय समितियों के पास ऐसी शक्तियां होती हैं कि वो किसी भी मामले से जुड़े दस्तावेज मांग सकती है, किसी को भी बुला सकती है और विशेषाधिकार हनन की रिपोर्ट दे सकती है और कार्रवाई कर सकती है. इसके अलावा संसद के सदस्यों से जुड़े विशेषाधिकार दुरुपयोग और सुविधाओं का दुरुपयोग करने के मामले भी सामने आते हैं. संसदीय समितियां इन मामलों की जांच करती है और कार्रवाई की सिफारिश करती है.