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बेसिक शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार : ब्लैक लिस्टेड होने से बचाने के एवज में बढ़ा दी कमीशन की राशि, जिलाधिकारी की सख्ती का उठाया लाभ

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The News Point (चन्दौली) :  शिक्षाधिकारी और ठेकेदार के बीच कमीशनखोरी को लेकर हुई बातचीत के वायरल ऑडियो की कलई अब खुलने लगी है. पूरा मामला फर्नीचर टेंडर और उसके भुगतान से जुड़ा है. पड़ताल में सामने आया कि फर्म ब्लैक लिस्टेड होने के कगार पर थी. जिसे बीएसए व ठेकेदार के बीच बने तालमेल पर बेसिक शिक्षा अधिकारी ने अपने रिश्क पर बचाया था.न सिर्फ बचाया बल्कि पूरा भुगतान भी कराया. लेकिन इसके बदले लंबी चौड़ी कमीशन की लिस्ट ने ठेकेदार को धराशाही कर दिया. 

बताया जा रहा है कि वित्तीय वर्ष 2021-22 में विद्यालयों में बच्चों को टाट पट्टी की जगह बेंच व टेबल की आपूर्ति करने के लिए निविदा खोली गई. सत्ता के करीबी लखनऊ के एक ठेकेदार के फर्म शिव शक्ति ट्रेडर्स की निविदा स्वीकार किया गया. जिसके बाद विद्यालयों में टेबल डेस्क बेंच आपूर्ति किया जाने लगा. लेकिन फर्म के द्वारा निविदा लेने के बाद विद्यालयों में टेबल बेंच की आपूर्ति को धीमा कर दिया. स्थिति यह हो गयी 2 वित्तीय वर्ष बीत जाने के बाद भी डेस्क बेंच की आपूर्ति नही हो पायी.

वायरल ऑडियो

विभागीय समीक्षा बैठक में जिलाधिकारी निखिल फुन्डे ने इस मामले को संज्ञान में लिया. उन्होंने जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी से फाइल तलब किया. इसके बाद उन्होंने निविदादाता के फर्म को लापरवाही के आरोप में ब्लैक लिस्टेड करने के लिए दिशा निर्देश दे दिया. जिलाधिकारी के निर्देश के बाद विभागीय कर्मचारियों द्वारा यह बात निविदादाता तक पहुंच गई. जिसके बाद ठेकेदार सीधे बाबू के माध्यम से सेटिंग हुई. जिलाधिकारी से वार्ता करने और कम्पनी ब्लैकलिस्टेड न होने पाए इसके लिए बेसिक शिक्षा अधिकारी व ठेकेदार के बीच मामला सेट हुआ. बीएसए कार्यदायी संस्था की जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेते हुए फर्नीचर आपूर्ति कराने की शिफारिश जिलाधिकारी से किये.

विभागाध्यक्ष के संतुष्ट होने पर जिलाधिकारी ने एक सप्ताह में आपूर्ति किये जाने की स्थिति में फर्म को काली सूची से डालने की कार्रवाई को रोक दिया. यहां विद्यालयों पर आपाधापी में फर्नीचर कुछ जगह पहुंचे कुछ की रिपोर्ट सत्यापन कर लगा दी गयी. जिसकी नोड्यूज बनाकर फर्म के भुगतान का आदेश करा लिया गया. लेकिन 2 वर्ष से लापरवाही करने वाला फर्म एक सप्ताह में ही सप्लाई कर दिया और भुगतान के लिए फाइल दौड़ने लगी. इस पर जिलाधिकारी ने 50 लाख रुपया टीडीएस की कटौती हर्जाने के रूप में करवा दिया.

लापरवाह फर्म के प्रति जिलाधिकारी की सख्ती बीएसए का राह आसान करती गयी. ठेकेदार से भुगतान के बदले मिलने वाले कमीशन में कटौती के बाद उन्होंने ठेकेदार को जमकर खरी खोटी सुनाई. उन्होंने बताया कि किस तरह से जिलाधिकारी के हाथ पैर जोड़कर फर्म को ब्लैक लिस्टेड होने से बचाया. यही नहीं आमदनी में कटौती होता देख बीएसए ने जिलाधिकारी का नाम भी जोड़ दिया. क्योंकि इस बात का पूरा विश्वास था कि जिलाधिकारी तो खुद नाराज है, ऐसे में निविदादाता वहां तक पहुंचेगा नही.वहीं उधर निविदादाता अपने भुगतान होने की स्थिति तक पूरे बात को रिकार्ड कर इंतजार करता रहा. जैसे ही 02 करोड़ तीन लाख का भुगतान हुआ उसने कमीशनखोरी की बात को ऊजागर कर दिया.

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